कुछ नए आयाम
ये अँधेरे अब डराते नहीं, उन साख के पत्तों की सरसराहट, झींगुर की आवाजें, रंगों की काली सखी, और उनके साथ आकाश में उड़ता वो निशाचर। अपनी परछाईयों में , किसी दूरस्थ आभा के होने की शंका। सपनो की ऊंचाइयों से वो लंबी छलांग। इन स्याह रंगों में खुद के खो जाने की कल्पना, और खुद ये रातें, अब डराते नहीं। वक्त की लंबी करवट ने, जिंदगी की फेहरिस्त में, कुछ नए आयाम जोड़े है। धुप की रौशनी में अचानक, कुछ पल के लिए सब धुंधला जाना। ठण्डी हवाओं के सिहरन की जब्त। उन बादलों में कोई पहचाना सा आकार। आँखों के किसी कोने में, मोती सा चमकता पानी। ढलते शाम की बाहों में सिमटता मेरा सवेरा, भरमाई रात को खुद में जगते देखना, अब मुझे डराते हैं।