वतन


यज्ञ की वेदी बनि थी,
इक आग दिलों में जले थें,
देकर आहुति प्राण की,
स्वतंत्रता के धुप खिले थें।

स्वतंत्र माँ के बेटों में,
स्वाभिमान अभी भी जिन्दा है,
झुकने न देंगे कभी तिरंगा
सांस अभी भी जिन्दा है।
सृजन के बीज बन के,
कर देंगे जान भी अर्पण,
उपजें गे पुनः इसी धरती पर,
जहाँ इंसानियत अभी भी जिन्दा है।

माँ भारती के पुत्र है,
ये भूमि हमारी जननी,
गंगा ने सींचा है हमें,
हिमालय ने दी शक्ति,
कश्मीर से कन्याकुमारी तक,
ये कारवां हमारा है,
हिन्दू है हम ,
वतन ये हिन्दुस्ता हमारा है।

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