हिम्मत

कुछ पा ही लूँगा शायद तुम्हे खोने के बाद,
पर ये बदहवास हँसी
मेरी ना हो सकेगी।
तुम्हारी हथेलियों के बीच वो गाल,
मेरे ना हो सकेंगे।
तुम्हारी आँखे जब आईना बनेंगी उसमें दिखने वाली वो परछाई,
मेरी ना हो सकेगी।
तुम्हारी मेंहदी लगी उन हाथों में कहीं तो जो नाम होगा वो,
मेरा ना हो सकेगा।
सूरज की पहली किरण जब तुम्हारे गालों को छुवेगी,
तब तुम्हारी आँखों पे ढल रहें उन केशों को हटा कर उन्हें कान के पीछे फसाने वाली उंगलियाँ,
मेरी ना हो सकेगी।
तुम्हारी गुस्से में लाल हो चुकी गालों को चूमने वाले होंठ,
मेरे ना हो सकेंगे।
तुम्हारी आँखों से गिरने वालें आँशुओं की वो बुँद जहाँ आकर खुद समा जाये वो कांधा,
मेरा ना हो सकेगा।
तुम्हे खुद में जीने की ख्वाइश,
मेरी ना हो सकेगी।
कुछ पा ही लूँगा तुम्हे खोने के बाद,
पर तुम्हे खो कर जी पाने की फिर हिम्मत,
मेरी ना हो सकेगी।

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