काश की बात

इक काश की बात थी,
जो काश में ही रह गई।

काश की तुम होती।
काश की तुम मेरी होती।
काश की मै तुम सा होता।
काश की तुम मुझ सी होती।

काश की तुम्हारी जुल्फें लहराती।
काश की वो घटायें बन पातीं।
काश की प्यार की बुँदे बरसती।
काश की हम उनमें भींग पातें।
काश की तुम मेरी बाँहों में सिमटती।
काश की मैं तुम्हारी यौवन में डूबता।

काश की मेरी सुबह की शाम तुम्हारे होंठो पर ढलती।
काश की मेरी रात की सुबह तुम्हारी पलकों पर उगती।

काश की तुम्हारी खुशबू मेरी साँसों में महकती।
काश की मेरी साँसे तुम्हारी धड़कनो में धड़कती।

काश कि मेरी खामोश जुबां के पीछे छिपी बात,
तुम सुन पाती।
काश की तुम्हारी बोलती बातों के पीछे छिपी ख़ामोशी मैं समझ पाता।

काश की तुम्हारी चौराहे वाली सड़क पर मैं अपनी जिंदगी ढूंढने निकलता।
काश की तुम मिल जाती।
काश की हम मिल जातें।

इक अफसाना गुजर गया,
वो यादें ढह गयी,
जो काश की बात थी,
वो काश में ही रह गई।

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