बस यूँ हीं
क्या जो कुछ था,
बस यूँ ही था?
वो चाँद का अपना रात जो था,
जो रात का था वो चाँद का भी,
तो अमावस्या की रात का क्या,
बिन चाँद उग आना यूँ ही था ?
एक ख्वाब का था जो आँख में थी,
रात पे हिं एक आस टिकी,
तब लेकर अंगड़ाई बाँहों में,
क्या सुबह का आना यूँ ही था ?
तुम साथ में थी और हाथ में भी,
कश्ती भी थी इस प्यार की हीं,
फिर कश्ती के उस सागर में क्या,
तूफान का आना यूँ ही था ?
तुम दूर खड़ी एक मंजिल थी,
तुम तक चल आना वाजिब था,
फिर रूठकर मेरी साँसों का क्या,
तुम में मिल जाना यूँ ही था ?
बस यूँ ही था?
वो चाँद का अपना रात जो था,
जो रात का था वो चाँद का भी,
तो अमावस्या की रात का क्या,
बिन चाँद उग आना यूँ ही था ?
एक ख्वाब का था जो आँख में थी,
रात पे हिं एक आस टिकी,
तब लेकर अंगड़ाई बाँहों में,
क्या सुबह का आना यूँ ही था ?
तुम साथ में थी और हाथ में भी,
कश्ती भी थी इस प्यार की हीं,
फिर कश्ती के उस सागर में क्या,
तूफान का आना यूँ ही था ?
तुम दूर खड़ी एक मंजिल थी,
तुम तक चल आना वाजिब था,
फिर रूठकर मेरी साँसों का क्या,
तुम में मिल जाना यूँ ही था ?
👌👌👌👌👌👌
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