फ़तवा

हज़ारो बंदिशे थी मुझ पर,
फिर भी दिल ने तुम को चाहा था,
खता इतनी सी थी कि तुमसे इजाजत नहीं मांगी l

अगर जो दिल ने दी होती,
मोहलत भी इक पल की,
तो आकर पूछते वो रास्ते,
जो जाते थे तेरे दिल तक l

बताना चाहता हूँ था नहीं,
बेअदब वो मेरा इश्क़,
थोड़े बेहक से गए थे कदम,
तुम्हारी सरगोशिओ में आके l

दिल की जो न मानो तो,
इन नजरो की ही सुन लो,
पढ़ा था वो हसीं फ़तवा,
मेरी इन ही आँखों ने l

किया था तुमने नामंजूर,
मेरी उस तमन्ना को,
तुममे ही सदा रहना,
और फिर तुममें ही मिल  जाना l

शायद था यही आना,
दुबारा मेरी हसरतों को,
की भूलने को दिल तुम्हे राजी नहीं होता l

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