चंद बातें
तुम तो खुश हो अपनी दुनिया में, मेरे जज्बात महरूम होते रहे, पर तुम्हे क्या, तुम्हे तो मेरे सिद्दत-ऐ-प्यार का एहसास तक नहीं l पता है, जब मै तुम्हे किसी और के साथ देखता हूँ तो, बिखरने लगता हूँ, टूटने लगता हूँ l पर तुम, तुम समझती क्यों नहीं मेरी ख़ामोशी को, बोलो, क्यों नहीं समझती ? न मेरे प्यार में जबरदस्ती थी, न हक़, फिर भी कुछ था, तो वो थे मेरे जज्बात, प्यार से पुचकार के दफा कर दिया होता इनको, यूँ ठोकर मारने की जरुरत तो न थी l महसूस तो किया होता, इन आंसुओ की पाकीज़ा मासूमियत को, इसी की तो जुस्तजू थी मुझे बरसों से l तुम्हारा साथ छोड़ने की तो सोच भी नहीं सकता, कहा तो होता, ये जान छोड़ देता, तुम्हारे कदमों पर l