गूंज

हे माँ ! क्यों तेरे कण्ठ के ,स्वर आहत से लगते है,
चीख शांत हो गई परन्तु,गूंज अभी तक बाकी है l

है दुःख की अब बापू के काँधे पे बैठ के,
अठखेलियां नहीं कर पाऊंगा l
पर माँ उनकी स्नेह के मुझ में,अंश अभी तक बाकी है l

ये बधिर तंत्र की गलती थी या, मेरे जीवनचक्र की अंतिम रेखा l
हाथ जोड़ के पूछो तो धरती के भगवान भी, स्वर-विहीन से लगते हैं l

था प्रश्ना मासूमों की रुदन में,जब श्वांस गले में अटकी थी l
बेबश छोड़ दिया मरने के लिए जिन लोगो ने,
उनमे इंसानियत क्या अभी तक बाकी है l

विफलताएं जिसकी भी हो मगर,हम चिर निद्रा में सो गए l
चीख शांत हो गई परन्तु, गूंज अभी तक बाकी है l

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