माज़ी

छोड़ ना तू हाथ मेरा ऐ माज़ी,
बहा ले जाने दे हाल के इन थपेड़ों को,साथ अपने l

कब तक यूँ समेटे रख्खे गा बाँहों में अपनी,
सच कहूं तो,
नाग़वार सी गुजरती है मुझ पे,तेरी दी ये खुशियाँ,
अतीत ही तो था, वो कौन सा मै था,
तो छोड़ ना तू अब हाथ मेरा l

तू देखता क्यों नहीं वहां, रौशनी की तरफ उन सवेरों को,
जो खड़े हैं फाटक पार मेरे l
जाने तो दे मुझे उन उजालों में,
अब जाने भी दे,
छोड़ ना तू हाथ मेरा l

मालूम है, करता है तू फिक्र मेरी,
कसोटती है मुझे एहसास, छोड़ जाने की तुझे l
पड़ी है ताड़ सी लम्बी ये उम्र, सामने मेरी l
तुझे पता क्या, तेरी मौजूदगी क़त्ल करती है इन साँसों की l

कर इन्तेजार के हक़ में,एक फैसला तू,
लौटूंगा किसी मोड़ पे, ऐतबार ये कर l
देख ना बुला रहीं है ,
ठंडी सी हवाएं,फूलों की खुशबु,सागर की लहर,चाँद की वो सीतल सी छाँव l
करता हूँ गुजारिश,
अब छोड़ दे तू हाथ मेरा,
अब छोड़ ना तू हाथ l

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