गुस्ताखी
तकल्लुफ जो करते थे बयां,तुमसे अपने दिल के,
ना जाना की गुस्ताखी कोई,हो रही हमसे..
रूठ जाओगे इस कदर ,जो पता होता,
तो सिल के जुबा,
अलफाजों को दिल में दफन कही कर देते..
ना करते कोई शिकवा,ना गिला ही कोई करते,
याद जो आती कभी तुम्हारी,तो बयान भी ना करते...
नजाकत के दीवाने थे,थी निगाहबा बनने की हसरत,
जो बेइतेफाकि हुई कोई,तो मुक़र्रर मौत कर देते..
जेहन में है कही थी,एक बात जो तुमने,
देते है मेरे दिल को सुकून,अलफ़ाज़ ये तेरे..
तो क्या हुई खता ऐसी ,जो खुदा-ऐ-पाक बन बैठे,
करने इन्साफ की जगह,ये रिश्ता साफ़ कर बैठे..
दिला दे मुझको मेरी रूह,जो तुमने चुराई है,
या बता दे कहा जायेगा ये,
सैलाब-ऐ-बला तुम्हारे बाद l
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