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जिंदगी

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बेअदब से है जिंदगी के ये फ़लसफ़े, गलतियां गिनता हूँ तो,अच्छाइयां छोटी लगती है, अच्छाइयां गिनु तो गलतियां l  नासूर सी चुभती है,रुआंसी इन हवाओं की,  कसूर बताते नहीं मेरे,और शिकायतें हज़ार हैं l बस भी कर रूठ जाने का ये सिलसिला, हयात ये मेरी ,किराये का मकान थोड़े है l गुरुर नहीं तेरी दी मोहलत का मुझे, तू खुश है जो,तो छीन ले इसे, बदल दे तू घर मेरा,डराता किसको है, मेरी पेहचान, तेरी मोहलत की मोहताज़ थोड़े है l हुन वाकिफ़ तेरी इन रिवायतों से लेकिन, कर दरकिनार इसको, इज़ाफ़ा तो कर अपनी वफाओं मे, तेरी बेवफाई का पहला सौदागर तो मै हूँ, ये नकाबपोश ईमानदार थोड़े है l _____________________________________ हयात - मकान

आबशार

ठहरे थे कदम जहां पर मेरे, मंजिल वो नहीं थी इस कारवाँ की, था जरूर उस पल में कुछ खास ऐसा, कदम जो ठहरे तो,पाक निगाहे भी गुस्ताखी कर बैठी l दुवाओं की फेहरिस्त थी पलकें झुकी हुई, मचल रहे थे अलफ़ाज़ लबों से बाहर आने को, था अक्स खुदा का,उस सुरत-ए-पाक में, यु ही ये साँसे ठहरती नहीं, किसी चेहरे के नूर पे l नवाजिस-ए-रिवायत के आबशार में जो डूबे, तो साहिल की तलाश ना रही, अब तो मोतजा की आश में, सब कुछ लुटाये बैठे है l पासबान, ओ खुदा करम कर इस नाचीज़ पर, आसना से नवाज मुझे उस आफरिन-ए-हुर के l