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एक टुकड़ा आसमां

क्या महसूस किया था, तुमने अपनी भावनाओं की कसक जब मेरे हाथ की उँगलियाँ तुम्हारी होंठो की लकीरों को छूती हुई तुम्हारी गर्दन से नीचे उतर रही थी ? कैसे भींच लिया था तुमने अपनी आँखों की दोनों पलकें एक साथ मानो आसमां ने परिंदे को,चाँद को छूने की इजाजत दे दी हो। तुम्हारी पलकें जो बंद ही रहना चाहती थी और तुम्हारे लरज़ते होंठ जो कुछ कहना चाहते थें शायद की वह केवल जुगनू की चमक नहीं दीपक का स्थायी प्रकाश चाहती हैं। उस रात ख़ामोशी रौशन थी और मेरा सुकून सोया हुआ था। साँसों के रफ़्तार के बीच मेरे बेसब्र होंठ तुम्हारी लबों पर ठहर कर उन्हें अनुभव करने को बेआबरू हुए जा रहे थें जब तुमने उन्ही बंद पलकों में मेरी दोनों हथेलियों की सभी उंगलियों को अपनी उंगलियों में फंसा मुझे अपनी तरफ खींचते हुए बोला था। "सुनो, मै अभी सिर्फ तुम्हारी हूँ पहले से कुछ ज्यादा।" फिर हम प्यार के उस असीम शांत सागर में कूद पड़े थें। वो हंसी रात धीरे-धीरे सुलगती जा रही थी, और कुछ ही पल में मेरे दरीचे पर सुबह उतर आई थी। वो एहसास खत्म होने को था, पर उस रात मैंने अपने पास, फूल सा तोड़कर एक टुकड़ा आसमां का रख लिया था...